किस भारतीय राष्ट्रपति ने सबसे अधिक मौत की सजा को माफ कर दिया?
2019 में, सरकार ने गुरु नानक देव जी की 550 वीं जयंती पर राजवाना के लिए मृत्युदंड को कम करने का फैसला किया। 28 साल की जेल के बाद अब राजवाना रिहाई के लिए आवेदन कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने राजवाना की दया याचिका को राष्ट्रपति द्वारा दो हफ्तों के भीतर निपटाने के लिए कहा।
1950 में संविधान लागू होने के बाद से, भारत के विभिन्न राष्ट्रपतियों के पास 440 दया याचिकाएं प्रस्तुत की गईं। इनमें से 308 को स्वीकार किया गया और दोषियों की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया।
इससे पहले, लाल किला हमले में शामिल मुरमु आरिफ की दया याचिका को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा यह उनकी दूसरी दया याचिका खारिज करने का मामला था। सुप्रीम कोर्ट ने भी 3 नवंबर 2022 को आरिफ की पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए उनकी फांसी की सजा को बरकरार रखा।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत, एक दोषी राष्ट्रपति से दया याचिका की गुहार लगा सकता है। राष्ट्रपति के पास यह शक्ति है कि वह दोषी को माफी दें या सजा को कम करें। इसके अतिरिक्त, राज्यपालों को भी संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत माफी देने का अधिकार है।
दया याचिका: अंतिम कानूनी उपाय
भारत में दया याचिका न्यायिक प्रक्रिया का अंतिम चरण है। यदि राष्ट्रपति किसी आरोपी की दया याचिका खारिज कर देते हैं, तो उसके पास और कोई कानूनी विकल्प नहीं बचता।
पिछले राष्ट्रपतियों का रुख
देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने कार्यकाल में सभी दया याचिकाएं खारिज कर दीं। उन्होंने बिहार के वैशाली जिले में छह लोगों की हत्या करने वाले जगत राय की दया याचिका को भी खारिज किया था। इसके अलावा, उन्होंने निर्भया हत्याकांड के चार दोषियों की दया याचिकाएं खारिज कीं, जिनकी तिहाड़ जेल में फांसी दी गई।
राष्ट्रपति कोविंद के कार्यकाल में अंतिम दया याचिका जुलाई 2006 में संजय की फांसी के मामले में खारिज की गई थी।
किसने सबसे अधिक दया याचिकाएं प्राप्त कीं?
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सबसे अधिक 181 दया याचिकाएं प्राप्त कीं, जिनमें से 180 को स्वीकार करते हुए उन्होंने दोषियों की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। उन्होंने केवल एक दया याचिका खारिज की।
उनके बाद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, और वी.वी. गिरि राष्ट्रपति रहे। राधाकृष्णन ने 57, ज़ाकिर हुसैन ने 22 और वी.वी. गिरि ने 3 दया याचिकाएं प्राप्त कीं, और सभी मामलों में फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया।
देश के चौथे राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को कोई दया याचिका नहीं मिली। राष्ट्रपति एन. संजीव रेड्डी के कार्यकाल में भी ऐसा ही रहा। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को 32 याचिकाएं मिलीं, जिनमें से 2 को स्वीकार किया और 30 को खारिज कर दिया। वहीं, राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने 50 में से 45 याचिकाएं खारिज कीं, जो सबसे अधिक संख्या थी।
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